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नशे के कारण बिखरते परिवारों की सत्य घटनाएं (भाग-10) पारिवारिक क्लेश और तनाव के साथ एकाकीपन न बन जाये कुसंग का कारण

नशे के कारण बिखरते परिवारों की सत्य घटनाएं (भाग-10)

 

पारिवारिक क्लेश और तनाव के साथ एकाकीपन न बन जाये कुसंग का कारण

नशे के कारण बिखरते परिवारों की सत्य घटनाएं (भाग-10)

पारिवारिक क्लेश और तनाव के साथ एकाकीपन न बन जाये कुसंग का कारण

लेखक- डॉ अशोक कुमार वर्मा

 

एक दिन मैं अपने कार्य में व्यस्त था कि एक परिचित का फोन आता है कि “डॉक्टर साहब नमस्ते, कैसे हो? मैंने उत्तर दिया, डॉक्टर साहब बचत अच्छे से हूँ। कृपा आप बताएं कैसे हैं। उन्होंने कहा, एक बच्चे की समस्या है। बच्चा नशा करता है। मेरे पास बच्चे के माता पिता बैठे हैं। कृपा इनकी समस्या का समाधान करो। मैंने उन्हें बताया कि अभी तो राजकीय कार्यों में व्यस्त हूँ और सांयकाल में मैं इनसे विस्तार से वार्तालाप कर सकता हूँ। कृपा इन्हे मेरा मोबाइल नंबर दे दीजिये। उधर से उन्होंने कहा कि ठीक है कृपा सायं काल में इनसे मिल लीजिये और उनकी समस्या का समाधान करने की कृपा करें।

 

रात्रि के समय मेरे पास उस बच्चे के माता पिता और उनके कुछ रिश्तेदार आते हैं और बताते हैं कि उनका पुत्र काल्पनिक नाम कार्तिक 19 वें वर्ष में प्रवेश कर चुका है और कुछ समय से नशा करने लगा है। नशे के कारण माँ को बहुत बुरी तरह से पीटता है और यहां तक कि पिता को भी नहीं छोड़ता। पिछले दिनों कार्तिक ने अपनी माँ की बहुत बुर ढंग से पिटाई की। माँ ने कहा, “मेरे पास एक पुत्र और एक पुत्री है। पुत्री का विवाह कर दिया है। हम दोनों सेवारत हैं।” माँ ने आगे कहा, “कार्तिक बहुत ही बुद्धिमान और पढाई में अच्छा होने के साथ साथ खेलों में भी बहुत अधिक प्रतिभावान था। खेलों में पदक भी लेकर आया लेकिन पता नहीं क्या हुआ थोड़े समय से कार्तिक बहुत अधिक आक्रामक हो गया है। कुछ असमाजिक गतिविधियों में भी वह संलिप्त पाया गया है। पुलिस की पकड़ में भी आया लेकिन संयोगवश बच गया। मेरा पुत्र ऐसा नहीं था। न जाने किस संगत में पड़ गया। किसी की नहीं सुनता। चूँकि घर में एक ही बच्चा है, इसीलिए इसकी सब मांग पूरी हो जाती है। लेकिन अब तो न केवल हमसे रुपये लेता है अपितु छीनने के साथ साथ चोरी से रुपए निकाल कर व्यय कर रहा है। कृपा हमारे बच्चे के लिए कुछ करो। आपकी बहुत कृपा होगी।”

 

मैंने माता-पिता और उसके रिश्तेदारों की पूरी बात सुनी और माता पिता से कहा, “आप चिंता न करें। हम आपका इस कार्य में पूर्ण सहयोग करेंगे। कल आप कार्तिक को लेकर मेरे साथ चलें। हम इसको कल सम्बंधित चिकित्सक को दिखाएंगे। इतना कहकर मैंने उनको घर जाने को कहा। अगले दिन मैं उनके साथ उनके पुत्र कार्तिकेय (काल्पनिक नाम) को लेकर चिकित्सक के पास पहुंचा। अब तक मैं भी यही सोच रहा था कि कार्तिक बुरे संग में पड़कर नशे का सेवन करता है और चिकित्सक को कहा कि इसका परीक्षण कर उचित उपचार करें। माँ ने भी चिकित्सक को पूर्ण सत्यता से बताया कि किस प्रकार उनका पुत्र घर में क्लेश करता है और रात रात तक घर से बाहर रहता है।

 

चिकित्सक ने कार्तिक से विस्तारपूर्वक इस विषय पर बात करते हुए पूछा कि वह ऐसा क्यों करता है। कार्तिक ने चिकित्सक को कहा, “मैं कभी कभी शराब अवश्य पिता हूँ और कल रात को भी मैंने शराब का सेवन किया था लेकिन मैं ड्रग्स नहीं लेता।” कार्तिक ने अपनी माँ को डांटते हुए कहा, “कुछ और रह गया है तो वह भी कह दे। तुमने मेरा तिरस्कार करा दिया।” मैंने भी चिकित्सक से प्रार्थना करते हुए कहा कि, “डॉक्टर साहब, कृपा इसका उचित उपचार करें।” चिकित्सक ने उसको नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती करने के लिए फाइल बनवाई और कहा कि एक बार इसका यूरिन टेस्ट करवा लीजिये ताकि परीक्षण से स्थिति स्पष्ट हो जाए। हमने उसके यूरिन का टेस्ट करवाया और टेस्ट में रिपोर्ट पॉजिटिव आई। चिकित्सक को उसकी रिपोर्ट दिखाई तो चिकित्सक ने कहा, “यह ड्रग्स नहीं लेता। इसीलिए इसको भर्ती करने का कोई औचित्य नहीं है। केवल कुछ औषधियां लिख रहा हूँ और समय समय पर इसकी काउन्सलिंग कराते रहें। इसके आक्रामक होने का कारण इसके परिवार की स्थिति है जिसका इसके मस्तिष्क पर प्रभाव पड़ा है।”

 

मैंने भी विभिन्न दृष्टिकोण से इस विषय पर गहनता से चिंतन किया तो कुछ तथ्य मेरे सामने आए जो इस प्रकार हैं। प्रथम पिता द्वारा शराब का सेवन करने से परिवार में क्लेश और अशांति का वातावरण बना हुआ था। दूसरे माता पिता दोनों सेवा में थे और बहन का विवाह हो गया था और दिन भर कार्तिक घर में अकेला रह जाता। ऐसे में तनाव का होना स्वाभाविक सी बात है। माता-पिता अधिक ध्यान नहीं दे पा रहे थे जिससे वह ऐसे लोगों के सम्पर्क में आया जो नशे आदि का सेवन करते थे। तीसरा कारण यह था कि वह घर में एक ही पुत्र था और जो मांगता था वह सरलता से पा लेता था। चौथा कारण उसके जीवन का निजी कारण था जो एक लड़की से सम्बंधित था। अंत में सब बिंदुओं पर विचार करने पर यह निष्कर्ष निकलता है कि मनुष्य के जीवन में एकाकीपन अवसाद की स्थिति उत्त्पन्न कर सकता है जबकि आवश्यकता से अधिक धन का व्यसन का कारण बनता है। पारिवारिक क्लेश से मनुष्य के मस्तिष्क पर कुप्रभाव पड़ता है और वह आक्रामक हो सकता है। जैसा कि कार्तिक के जीवन में घटित हुआ ऐसा भविष्य में किसी के साथ न हो तो माता पिता और अभिभावक को यह सुनिश्चित करना होगा कि परिवार का वातावरण शांतिमय बना रहे। परिवार का मुखिया नशे से दूर रहकर ही अपने बच्चों का सच्चा पथ-प्रदर्शक बन सकता है।

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