कैथल में माता गेट के पास स्थित ऐतिहासिक सूर्यकुंड डेरे में काली माता का मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र है। इस डेरे की उत्पत्ति महाभारत काल से जुड़ी हुई है। यह 48 कोस का कुरुक्षेत्र है। महाभारत काल में पांडव पुत्र युधिष्ठिर ने कैथल में नवग्रह कुंडों का निर्माण किया था।
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Toggleकैथल में चैत्र नवरात्र मेला: महाभारत काल का काली माता मंदिर, इतिहास हैरान करेगा
सूर्यकुंड, इनमें से सबसे बड़ा, माता गेट पर बनाया गया था। वहीं, काली माता का मंदिर बाजीगर समाज की कुलदेवी है। यही कारण है कि चैत्र मास की अमावस्या और पहले नवरात्र पर यहां पर उत्सव का आयोजन होता है।
चैत्र नवरात्र इस बार सोमवार से शुरू होगा। इस अवसर पर यहां दो दिवसीय मेला होगा। मंदिर प्रशासन इस मेले की तैयारी कर रहा है। मंदिर के आसपास बड़ी-बड़ी लाइटें लगने लगी हैं। क्षेत्र के बाहर भी बाजार सज रहे हैं। सूर्यकुंड के साथ माता शीतला और माता काली का मंदिर है। यहां भगवान शिव का मंदिर भी है। मंदिर की दीवारें काले-भूरे ग्रेनाइट पत्थर से बनाई गई हैं। मंदिर के बाहरी चारदीवारी में भगवान दत्तात्रेय, भगवान लक्ष्मीनारायण, भगवान राधाकृष्ण, हिंगलाज माता, मां दुर्गा, माता बगलामुखी और मां अन्नपूर्णा की मूर्तियां हैं, और गेट पर हनुमान जी भी हैं।
सालाना होने वाले इस दो दिवसीय मेले में इस बार 50 हजार से अधिक लोग आने की उम्मीद है। ये श्रद्धालु हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश से भी आएंगे। बच्चों के झूले भी लगाने लगे हैं। इसके अलावा, मेले में आने वालों के लिए अस्थायी शौचालय और स्नानघर भी बनाए जा रहे हैं। मंदिर के महंत रमनपुरी ने मेले की तैयारियों के दौरान भंडारा और अन्य सेवा देने वाले लोगों से बातचीत की और मंदिर प्रशासन से उनके सहयोग की अपील की।
महंत रमनपुरी ने बताया कि बाजीगर समाज का सबसे बड़ा देवी मंदिर डेरा परिसर में है। इस मेले मां काली की पूजा करने के लिए सबसे अधिक लोग बाजीगर समाज से आते हैं। उन्हें बताया कि इस बार मेले के दोनों दिन जाम से बचने के लिए कमेटी चौक का रास्ता चीका बाईपास से सीवन गेट और माता गेट से गुजरेगा। इसके लिए पुलिस प्रशासन से अनुरोध किया गया है। बताया गया कि मेले में दो दिन तक 200 से अधिक कर्मचारी सेवा में रहेंगे।
यह है मंदिर का इतिहास, जैसा कि महंत रमनपुरी ने बताया: डेरे में काली माता का मंदिर काफी प्राचीन है। इसकी काफी स्वीकृति है। आजादी से पहले बाजीगर समाज के सबसे पुराने कलवा पीर महाकाली के बहुत श्रद्धालु थे। लाहौर उनका घर था। लाहौर उनका घर था। सैकड़ों वर्ष पहले, वह मां काली की पूजा करते थे। रात को जब वे सोए, मां काली ने उन्हें सपने दिखाए। फिर कहा कि एक बकरा सुबह उन्हें दिखेगा। उस बकरे के साथ चलना चाहिए।
यह बकरा जहां भी रुक जाए, वहीं मेरा मंदिर बनाकर पूजा करना। माता ने बताया कि बकरा सूर्यकुंड डेरे में आकर रूका था। तब से कलवा पीर यहां बस गए। अब भी कलवा पीर की समाधि और उनका धुना लगा हुआ है। तब से बाजीगर समाज की सर्वोच्च देवी का मंदिर यहीं पर बना रहता है।
आजादी से पहले पाकिस्तान में रहने वाले बाजीगर भी नवरात्र में पूजा करने आते थे। रमनपुरी ने बताया कि बाजीगर समाज में युवा-युवतियां माता काली के मंदिर में माथा टेकने के बाद ही शादी करते हैं।
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