हरियाणा में लगभग 2.70 लाख सरकारी कर्मचारी कार्यरत हैं। एक कर्मचारी के पास माता-पिता, पत्नी और दो बच्चों के हिसाब से आश्रितों की संख्या लगभग 13.50 लाख है। यह एक बड़ा वर्ग है, इसलिए कोई भी दल उनसे नाराज नहीं होना चाहेगा। भाजपा-जजपा सरकार ने कर्मचारियों को साधने के लिए कई घोषणाएं की हैं, जिसमें कैशलेस सेवाएं शामिल हैं। बावजूद इसके, हरियाणा के कर्मचारी संगठन ओपीएस का मुद्दा उठाते हैं।
OPS: ओल्ड पेंशन स्कीम से हरियाणा की राजनीति में उबाल आ जाएगा, भाजपा ने छोड़ दिया, कांग्रेस को वापस लाने का वादा
ओपीएस (पुरानी पेंशन स्कीम) का मुद्दा हरियाणा में लोकसभा चुनावों में चर्चा का विषय बन जाएगा। और न्यू पेंशन योजना को बदलने के लिए एक कमेटी बनाई गई है।कांग्रेस, सत्ता में आते ही अपनी वापसी की घोषणा करने के लिए भी उत्सुक है। राजनीतिक दल और कर्मचारी संगठन लोकसभा चुनाव में इस मुद्दे को भुनाने की कोशिश करेंगे क्योंकि यह राज्य और केंद्र दोनों से जुड़ा है। यह देखना है कि राज्य का कर्मचारी वोट किसके खाते में जाएगा।
दिल्ली और पंचकूला में कर्मचारी दो बड़ी रैलियां करके सरकार को चेता चुके हैं। यह देखना है कि लोकसभा चुनावों में विपक्षी पार्टियां इस मुद्दे को कैसे भुनाते हैं और सत्ताधारी पार्टी किस प्रकार से कर्मचारी वोट बैंक को साधते हैं।
यही कारण है कि कर्मचारियों का किसी भी राज्य की सरकार बनाने और बिगाड़ने में महत्वपूर्ण योगदान होता है। पढ़ा लिखा पाठ्यक्रम के कारण वह हर दिन हजारों लोगों से सीधे संपर्क में रहता है। वह भी किसी मुद्दे पर आम जनता से राय बनाते हैं। 2.70 लाख कर्मचारी एक बड़ी संख्या है। साथ ही, कर्मचारी अपने आश्रितों और आसपास के लोगों से भी जुड़ा हुआ है। इसलिए हर कर्मचारी और उसके परिवार को यह मुद्दा प्रभावित करता है। इसकी गंभीरता अधिक है क्योंकि कर्मचारी वर्ग का मतदान महत्वपूर्ण है।
पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश में 1972 के पेंशन रूल के अनुसार
पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश में 1972 के पेंशन रूल के अनुसार, ओपीएस लागू हो गया है और कर्मचारियों को लाभ मिलना शुरू हो गया है। हिमाचल प्रदेश में अभी तक ४५०० कर्मचारियों को इस लाभ दिया गया है। कर्मचारी जीपीएफ नंबर प्राप्त कर चुके हैं और ओपीएस के तहत आए हैं। हिमाचल प्रदेश हरियाणा से मिलता-जुलता है। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस ने ओपीएस को फिर से शुरू करने का वादा किया था, जिससे कांग्रेस की सरकार बन गई है। यही कारण है कि हरियाणा के कर्मचारी भयभीत हैं कि यह चुनाव में एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन सकता है। इसी तरह, ओपीएस को अन्य पड़ोसी राज्यों, पंजाब, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी लागू करने की घोषणा की गई है, लेकिन अब पंजाब और राजस्थान में इसे बंद कर दिया गया है।
इस मामले में, 20 फरवरी को मुख्यमंत्री ने पुरानी पेंशन बहाली संघर्ष समिति के सदस्यों से एक बैठक की, जो अब तक की गई प्रयासों का हिस्सा थी। इसके बाद तीन वरिष्ठ अधिकारियों की कमेटी बनाई गई, मुख्य सचिव की अध्यक्षता में। वित्त विभाग के एसीएस भी इनमें शामिल हैं। संघर्ष समिति केवल एक बार इस कमेटी से मिली है। अधिकारियों ने समिति के सदस्यों से पूरा डाटा मांगा और समीक्षा के लिए समय मांगा। समिति को फिर से नहीं बुलाया गया। इस बारे में समिति के राज्य प्रधान विजेंद्र धारीवाल ने कहा कि ओपीएस कर्मचारी लोकसभा और विधानसभा चुनावों में अपनी लड़ाई और सरकार के खिलाफ अभियान जारी रखेंगे।
Old and New Pension Plans अलग हैं। कर्मचारियों को नवीन पेंशन स्कीम में सेवानिवृत्ति पर 1700 रुपये तक की पेंशन मिलती है, जो ओपीएस में 10 गुणा अधिक होती है। केंद्र सरकार ने नवीन पेंशन योजना को सुधारने के लिए एक कमेटी बनाई है। ठीक उसी तरह, हरियाणा सरकार ने भी एक समीक्षा कमेटी बनाई है, लेकिन यह केवल मुद्दों को हल करने के लिए बनाया गया है। OPS एक महत्वपूर्ण मुद्दा है लोकसभा चुनाव भी इससे प्रभावित होंगे। –सुभाष लांबा, सर्व कर्मचारी संघ का पूर्व प्रदेशाध्यक्ष
राज्य सरकार कर्मचारी हितैषी है। कर्मचारियों की राज्य सरकार ने कैशलेस चिकित्सा सुविधा के अलावा कई महत्वपूर्ण निर्णय किए हैं। ओपीएस केंद्र की जिम्मेदारी है। केंद्र सरकार ने इस मामले में एक कमेटी बनाई है, जिसकी रिपोर्ट के आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी। –सुदेश कटारिया, मीडिया कार्डिनेटर और हरियाणा के मुख्यमंत्री
कांग्रेस की सरकार बनते ही राज्य में ओपीएस को फिर से शुरू किया जाएगा। हिमाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ सरकारें ऐसा कर चुकी हैं, लेकिन राज्य सरकार मामले को अटकाने के लिए इसे केंद्र का मामला बता रही है। नवीन पेंशन स्कीम के कर्मचारियों को धोखा दिया जा रहा है और उनका आर्थिक नुकसान हो रहा है –भूपेंद्र सिंह हुड्डा, नेता प्रतिपक्ष
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