हरियाणा में लोकसभा चुनाव ने सियासी दलों को अभ्यास किया है। 2019 में भाजपा को मिली सभी दस सीटें बचाना एक चुनौती है, जबकि कांग्रेस को पिछले दस साल से प्राप्त कमी को तोड़ना होगा। इसके लिए दोनों पक्षों को बहुत गहरा मंथन करना होगा।
Haryana राज्य: जाटलैंड में समुद्र मंथन की तरह; BJP को 2019 में वापस लाने की चुनौती, कांग्रेस को दस साल की कमी दूर करने की चुनौती
हरियाणा में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले हुई राजनीतिक हिंसा के गंभीर परिणाम होंगे। हरियाणा में हुए इस प्रयोग से भाजपा और कांग्रेस की रणनीति प्रभावित होगी। विधानसभा चुनाव का आधार इससे निकलेगा।जाटलैंड में जातीय समीकरणों को सुधारने के लिए सभी पक्षों को गहराई से सोचना होगा। सियासी दलों की प्रयोगशाला बन चुके हरियाणा में इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को छोड़कर किसी भी पार्टी को कुछ भी हासिल नहीं है। 2019 में भाजपा को सभी दस सीटें बचाना एक चुनौती है, लेकिन 2014 में एक सीट और पिछले चुनाव में शून्य पर सिमटी कांग्रेस को दस साल की कमी तोड़नी होगी।
यह हरियाणा में पहली बार हुआ जब सत्तारूढ़ दल ने चुनाव से पहले मुख्यमंत्री बदलने का दांव खेला। भाजपा का लक्ष्य एंटी इंकम्बेंसी फैक्टरों को कम करना है, लेकिन लोगों को लगना चाहिए कि व्यवस्था और चेहरा दोनों बदल गए हैं। मंत्रिमंडल में अधिकांश पुराने चेहरे हैं। नए मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी को आचार संहिता लागू होने से अब समय और अवसर नहीं मिल रहे हैं कि उन्होंने सरकार बदल दी है जिसके खिलाफ थे।
संगठन का आधार—भाजपा ने चौबंदी से लेकर प्रत्याशी चुनने में तेजी दिखाई। छह उम्मीदवार घोषित किए गए हैं। इनमें जातीय समीकरण शामिल थे। भाजपा ने दो अन्य राज्यों, कर्नाटक और उत्तराखंड में पूर्व मुख्यमंत्रियों को मैदान में उतारा है, इसलिए मनोहर को लोकसभा चुनाव लड़वाना दिग्गजों को मैदान में उतारा है। लेकिन कांग्रेस इसी पर उससे पूछ रही है कि सीएम को क्यों हटाया गया है।
उनकी परफार्मेंस अच्छी नहीं थी?भाजपा ने जाट मतों के विभाजन के कारण नायब सिंह को मुख्यमंत्री बनाया, जो सैनी समुदाय से संबंधित है, जो अढाई प्रतिशत जनसंख्या का हिस्सा है. इस प्रकार, भाजपा अन्य पिछड़ा वर्ग की ४० प्रतिशत आबादी को नियंत्रित करना चाहती है। 25 प्रतिशत जाट वोट बैंक उसके लिए दुर्लभ है। भाजपा ने जाट बेल्ट में अपना नुकसान महसूस किया है, क्योंकि सांसद बृजेंद्र सिंह और उनके पिता बीरेंद्र सिंह ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है। भाजपा ने जाट मतों को विभाजित किया।
जननायक जनता पार्टी (जजपा) से विलय करने के बाद एक और बहस शुरू हुई। उसे उम्मीद है कि अगर जजपा अकेले चुनाव जीते तो कांग्रेस, जजपा और इनेलो में जाट मतों का विभाजन हो सकता है, जिसका लाभ उसे मिल सकता है।भाजपा को पंजाबी यानी जीटी रोड बेल्ट की तीन सीटों से भी उम्मीद है, क्योंकि मनोहर और सैनी दोनों इस क्षेत्र से हैं. पिछले पांच साल में उनका जनता से कितना संबंध था, यह मतदाता ही देखेगा। भाजपा ने अहीरवाल बेल्ट और एनसीआर में बल जमाने के लिए राव इंद्रजीत और कृष्णपाल गुर्जर को फिर से मैदान में उतारा है, जो गुर्जर और यादव मतदाताओं को ध्यान में रखते हैं।
कांग्रेस की सबसे बड़ी परेशानियों में से एक है गुटबाजी, जो कांग्रेस ने भारत गठबंधन में सहयोगी आम आदमी पार्टी को कुरुक्षेत्र सीट देकर इस्तेमाल की है। कांग्रेस नेता भी वहां आपके प्रत्याशी के लिए जुट गए हैं, लेकिन इस सहयोगी से कांग्रेस को बाकी क्षेत्रों में भी इतना समर्थन मिलेगा, यह कहना मुश्किल है। जातिगत समीकरण कांग्रेस को मदद करते हैं, हालांकि गुटबाजी उसकी सबसे बड़ी चुनौती है। कांग्रेस को इस बार भी जाट और दलित वोट बैंक से ही विजय मिलेगी।
जाट और दलित मतदाता दस में से लगभग पांच सीटों पर जीत-हार निर्धारित करते हैं। कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष व दीपेंद्र हुड्डा गुट विधायक दल के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ है, वहीं कुमारी सैलजा, रणदीप सुरजेवाला और किरण चौधरी का गुट है। कांग्रेसी लोगों का मानना है कि पार्टी में असहजता है, लेकिन जाट और दलित कंबीनेशन के नेताओं को वोट देने से कांग्रेस को फायदा होगा। कांग्रेस देसवाली और बांगर बेल्ट में इसी कारक का फायदा उठाना चाहती है। कांग्रेस को छठे चरण में चुनाव होने से प्रत्याशी चुनने में कुछ समय मिल गया है।
जजपा के लिए अपने विधायकों और नेताओं को संभाले रखना ही सबसे बड़ी चुनौती है, क्योंकि उन्होंने अभी तक आगामी रणनीति नहीं बनाई है। वह लोकसभा चुनाव लड़ने के दौरान सिर्फ वोट काटने की स्थिति में होगी। जजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अजय चौटाला और मनोहर सरकार में उप मुख्यमंत्री रहे दुष्यंत चौटाला अभी तक अपनी अगली योजना नहीं बना पाए हैं। दूसरी ओर, जजपा, जो इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) से टूटकर बन गया, उम्मीद करता है कि उसके नेताओं की घर वापसी होगी जब जजपा में विभाजित हो जाएगा।
इनेलो ने पुनर्गठन की उम्मीद में सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का घोषणा किया है। पार्टी के प्रधान महासचिव अभय चौटाला का ध्यान इस चुनाव से अधिक विधानसभा चुनाव पर रहेगा। अब और पार्टियां बदल जाएंगी, जो इस चुनाव को पिछले चुनावों से अलग करेगा।
भर्ती में खर्ची-खर्ची प्रणाली को खत्म करने के साथ-साथ मनोहर सरकार के कामों को भी भुनाएगी, जैसे भाजपा मोदी के नाम, राम मंदिर, अनुच्छेद 370 सहित केंद्र सरकार के राष्ट्रीय एजेंडे। कांग्रेस कानून-व्यवस्था, बेरोजगारी और भाजपा सरकार की असफलताओं पर चर्चा करेगी। भाजपा का दावा है कि उसने भ्रष्टाचार वाले भर्ती प्रणाली को समाप्त किया है, लेकिन कांग्रेस का दावा है कि भाजपा ने अपना वादा पूरा नहीं किया है।
किसानों की बात जमीन पर उतनी महत्वपूर्ण नहीं है जितना नारों में है।भाजपाइयों का कहना है कि किसानों को अंतर नजर आया है क्योंकि फसल खरीद, बीमा और मुआवजे के पैसे सीधे खातों में गए हैं। प्रदेश के 1.98 करोड़ मतदाताओं को निर्णय देना होगा कि दबावों और वादों के बीच ऊंट किस करवट बैठेगा।
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