सपा-कांग्रेस गठबंधन : क्या बीएसपी यूपी में सपा-कांग्रेस (सपा-कांग्रेस गठबंधन )की बहस में हार जाएगी? उत्तर प्रदेश में भाजपा को चुनौती देने के लिए एनडीआई गठबंधन में बहुजन समाज पार्टी भी शामिल होने की चर्चा हुई। बातचीत में चर्चा हुई कि मुस्लिमों और दलितों के बड़े विखराव को रोका जा सकता है अगर बहुजन समाज पार्टी इस समूह में शामिल हो जाती है..।
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Toggleक्या बसपा ने सपा-कांग्रेस गठबंधन की चुनौती देने की बातों को ध्यान में रखते हुए चुनावी परिदृश्य में नई मोड़ आएगा?
बसपा सुप्रीमो मायावती ने फिर से घोषणा की कि वह बिना गठबंधन (सपा-कांग्रेस गठबंधन )के राजनीति में उतरने जा रही हैं। वास्तव में, पिछले कुछ दिनों से राजनीतिक हलकों में चर्चा हो रही थी कि मायावती कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के गठबंधन INDI में शामिल होंगी। क्योंकि कांग्रेस ने अपने वरिष्ठ नेताओं से संपर्क करके गठबंधन में शामिल होने का अनुरोध किया था।
मायावती ने एक बार फिर किसी भी राजनीतिक दल से गठबंधन नहीं करने की घोषणा की है, इससे लगता है कि वह INDI गठबंधन समूह को खराब करने वाली हैं। क्योंकि सपा, बसपा और कांग्रेस का चुनावी गठबंधन बहुत मजबूत था। मायावती अब इस निर्णय के बाद अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर सकती हैं। इसके लिए आकाश आनंद की अगुवाई में एक महत्वपूर्ण बैठक होगी।
उत्तर प्रदेश में भाजपा को हराने के लिएसपा-कांग्रेस गठबंधन में बहुजन समाज पार्टी भी शामिल होने की चर्चा हुई। बातचीत में चर्चा हुई कि मुस्लिमों और दलितों के बड़े विभाजनों को रोका जा सकता है अगर बहुजन समाज पार्टी इस समूह में शामिल हो जाती है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर सपा, बसपा और कांग्रेस गठबंधन करते हैं तो उत्तर प्रदेश में राजनीतिक परिदृश्य बदल सकता है। जैसा कि वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक बृजेंद्र शुक्ला बताते हैं, 2014 में बहुजन समाज पार्टी का वोट प्रतिशत लगभग शून्य था और 2019 में लगभग दस सीटों पर था।कांग्रेस, बसपा और सपा मिलकर चुनाव जीतते तो बसपा के 19 प्रतिशत वोटों से कई राजनीतिक समीकरण बनाए जा सकते थे।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बहुजन समाज पार्टी मुस्लिम और दलित मतदाताओं पर जो दांव लगा रही है, वह कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के लिए चुनौती पैदा कर सकती है। राजनीतिक विश्लेषक नसरुद्दीन सिद्दीकी ने कहा कि बसपा ने दलितों और मुस्लिमों सहित पिछड़ों पर पूरा फोकस करते हुए टिकट बंटवारे की योजना बनाई है।
बसपा ने पिछले चुनावों में भी इसी जातिगत समीकरण को साधते हुए अपने प्रत्याशी उतारे थे। ऐसे में, अगर बसपा इस तरह से इस लोकसभा चुनाव में भी प्रत्याशी उतारती है,इसलिए समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के मतदाताओं में मतभेद हो सकते हैं। जो कांग्रेस और समाजवादी पार्टी को राजनीतिक रूप से अनुकूल नहीं है। कांग्रेस इसलिए इन हालात को भांपते हुए बसपा के साथ काम करने को तैयार थी।
सूत्रों का कहना है कि बहुजन समाज पार्टी से समझौते को लेकर समाजवादी पार्टी पक्षधर नहीं थी। समाजवादी पार्टी के नेताओं ने कहा कि बहुजन समाज पार्टी से सहमत होने पर उसका वोट नहीं दिया जा सकता। 2019 के चुनाव में इसका उदाहरण बताते हुए पार्टी के नेताओं ने भी अंदरूनी विरोध प्रकट किया था। कि जब सपा और बसपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में गठबंधन किया, तो समाजवादी पार्टी का वोट बहुजन समाज पार्टी को गया।
2014 से 2019 में कम सीटों पर लड़ने के बाद भी बसपा शून्य से 10 सीटों पर आ गई। उससे समाजवादी पार्टी को कोई लाभ नहीं हुआ। कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने इन सब दलीलों के बाद भी बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन करने की लगातार कोशिश की, सूत्रों ने बताया। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि पार्टी मुस्लिम वोटों को विभाजित करने के लिए कोई खतरा नहीं उठाना चाहती थी। इसलिए वह बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन(सपा-कांग्रेस गठबंधन ) करने की कोशिश की।
सियासी विश्लेषकों का मानना है कि बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन में शामिल होने की चर्चा हो रही है, लेकिन मायावती ने अमरोहा से प्रत्याशी उतारकर स्पष्ट कर दिया कि ऐसा नहीं होने वाला। गुरुवार को बहुजन समाज पार्टी ने डॉक्टर मुजाहिद हुसैन उर्फ बाबू भाई को अमरोहा से अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया था।
सपा-कांग्रेस गठबंधन
क्योंकि अमरोहा से बहुजन समाज पार्टी के निलंबित सांसद दानिश अली INDI गठबंधन से सीट की मांग कर रहे हैं यही कारण है कि पहले से ही चर्चा की जा रही थी कि ऐसी कई अन्य सीटों पर राजनीतिक समन्वय कैसे होगा।
मायावती ने एक बार फिर कहा कि वह गठबंधन के चुनाव में भाग नहीं लेगी।शनिवार को मायावती ने सोशल मीडिया पर लिखा कि बीएसपी देश में लोकसभा का आम चुनाव अकेले अपने बलबूते पर पूरी तैयारी और साहस से लड़ रही है। साथ ही, उन्होंने मीडिया पर निशाना साधते हुए कहा कि वे चुनावी गठबंधन या तीसरे मोर्चे की चर्चा कर रहे हैं।
बहुजन समाज पार्टी के सूत्रों ने कहा कि मायावती जल्द ही अपने प्रत्याशियों का ऐलान कर सकती है। मायावती आकाश आनंद अगले कुछ दिनों में कुछ जोनल कोऑर्डिनेटरों के साथ एक महत्वपूर्ण बैठक करने वाली हैं। मायावती पहले चरण में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कुछ प्रत्याशियों को घोषित कर सकती हैं। सूत्रों ने बताया कि मायावती पिछले सप्ताह प्रत्याशियों की घोषणा करने के लिए तैयार थीं।
लेकिन फिलहाल इस प्रक्रिया को रोक दिया गया था। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि प्रत्याशियों की घोषणा नहीं होने के बाद बसपा ने समाजवादी पार्टी और कांग्रेस से गठबंधन करने की चर्चा शुरू कर दी। इस बहस में बहुजन समाज पार्टी को अपने मतदाताओं के बीच में पहुंच रहे संदेश से नुकसान होता दिखाई दिया। यही कारण है कि बसपा ने अपनी स्थिति को स्पष्ट करते हुए गठबंधन में शामिल होने से इनकार कर दिया है।
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