प्रधानमंत्री ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में निर्णय का स्वागत करते हुए कहा, “स्वागतम!” महान सुप्रीम कोर्ट का निर्णय, जो बेदाग राजनीति और व्यवस्था में लोगों का विश्वास बढ़ा देगा।प्रधानमंत्री मोदी ने भी वोट के बदले नोट मामले पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले पर खुशी जताई है।
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Toggleप्रधानमंत्री ने सोशल मीडिया पर अपने उत्साह के साथ सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले का स्वागत किया
प्रधानमंत्री ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में फैसले का स्वागत किया और लिखा, “स्वागतम! माननीय सुप्रीम कोर्ट का एक अच्छा फैसला, जो बेदाग राजनीति और व्यवस्था में लोगों के विश्वास को पुख्ता करेगा।”‘
सात जजों की संविधान पीठ ने झारखंड मुक्ति मोर्चा रिश्वत मामले में पूर्व निर्णय को पलट दिया है और सांसदों-विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामला चलाने की अनुमति दी है। मुख्य न्यायाधीश ने 1998 के फैसले की व्याख्या को संविधान के अनुच्छेद 105 और 194 के विपरीत बताया और कहा कि रिश्वतखोरी के मामलों में संसदीय विशेषाधिकारों से कोई सुरक्षा नहीं मिलेगी। अनुच्छेद 105 और 194 सांसदों और विधायकों की शक्तियों और अधिकारों को बताते हैं। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि इन अनुच्छेदों के तहत रिश्वतखोरी के मामले में छूट नहीं है क्योंकि यह सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी को नष्ट करता है।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हम मानते हैं कि रिश्वतखोरी संसदीय विशेषाधिकार नहीं है। भारत में संसदीय लोकतंत्र को माननीयों का भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी नष्ट कर रहा है। कोर्ट ने कहा कि राज्यसभा चुनाव में रिश्वत लेने वाले विधायकों के खिलाफ भ्रष्टाचार रोधी कानून लागू होना चाहिए। केंद्र सरकार ने मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में रिश्वत के बदले वोट के मामले में मिलने वाले विशेषाधिकार का भी विरोध किया था।
सरकार ने बताया कि रिश्वतखोरी कभी भी मुकदमे से छूट का कारण नहीं हो सकती। सांसद-विधेयक को कानून से ऊपर रखना संसदीय विशेषाधिकार नहीं है।झारखंड की विधायक सीता सोरेन पर 2012 में राज्यसभा चुनाव में वोट के बदले रिश्वत लेने का आरोप लगा था। उनके खिलाफ इस मामले में आपराधिक मामला चल रहा है।
सीता सोरेन ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 194(2) के तहत उन्हें सदन में कुछ भी कहने का अधिकार है और किसी को भी वोट देने का अधिकार है। जो इन बातों के लिए उनके खिलाफ मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है। इस तर्क पर सीता सोरेन ने अपने खिलाफ चल रहे मुकदमे को खारिज करने की मांग की थी। 1998 में पांच जजों की संविधान पीठ ने इस पर रिश्वत लेकर फैसला पलट दिया।
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने 1998 में पांच जजों की संविधान पीठ द्वारा दिए गए फैसले को पलटते हुए सांसदों-विधायकों को अभियोजन से छूट देने से इनकार कर दिया है और भ्रष्टाचार रोधी कानून के तहत कार्रवाई करने को कहा है।
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