INDI समझौता: यहां हुई विपक्षी गठबंधन की सबसे बड़ी चूक होती, अगर यह पहले हुआ होता तो यह कमजोर नहीं होता या टूट नहीं जाता था।
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विपक्षी गठबंधन में शामिल राजनीतिक दलों के कई वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि इंडिया ब्लॉक के प्रमुख दल कांग्रेस ने सीट बंटवारे में सबसे अधिक लापरवाहियां बरतीं। नतीजतन, क्षेत्रीय दल सीटों के बंटवारे की घोषणा का इंतजार करते रहे और चुनाव नजदीक आते ही या तो अपनी नीति बदलते रहे या अलग होकर अकेले सियासी मैदान में उतर पड़े।
I.N.D.I. गठबंधन, विपक्षी दलों का सबसे बड़ा गठबंधन, अभी भी टूट नहीं पड़ा है। वास्तव में, इस गठबंधन की असली वजह में ‘एक’ सबसे बड़ी गलती सामने आ रही है विपक्षी गठबंधन में शामिल राजनीतिक दलों के कई वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि इंडिया ब्लॉक के प्रमुख दल कांग्रेस ने सीट बंटवारे में सबसे अधिक लापरवाहियां बरतीं। नतीजतन, क्षेत्रीय दल सीटों के बंटवारे की घोषणा का इंतजार करते रहे और चुनाव के नजदीक आते ही या तो अपनी नीति बदलते रहे या अलग होकर राजनीतिक क्षेत्र में अकेले उतर पड़े।
केंद्रीय NDA सरकार को आगामी लोकसभा चुनाव में चुनौती देने के लिए देश की सभी प्रमुख राजनीतिक पार्टियों ने एक बड़े गठबंधन समूह INDIA बनाया। इस संघर्ष में 26 राज्यों के दल शामिल हुए। गठबंधन में शामिल एक प्रमुख राजनीतिक दल से संबंधित एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि गठबंधन का उद्देश्य भारतीय जनता पार्टी से संघर्ष करना था। मिलकर यह संघर्ष करना चाहिए था।
कांग्रेस, गठबंधन के प्रमुख घटक दल, पिछले साल जून से अब तक सीटों को चुनने में असफल रही है। पार्टी के उक्त वरिष्ठ नेता का कहना है कि जब संघर्ष करना है, तो निर्धारित करना चाहिए कि गठबंधन में शामिल घटक दल राज्यों में चुनाव लड़ेंगे। हर बैठक में सीटों का बंटवारा मुद्दा उठाया गया। लेकिन कोई ठोस निष्कर्ष नहीं निकल पाया।
विपक्षी गठबंधन में शामिल सियासी दल के उक्त वरिष्ठ नेता का कहना है कि इस परिस्थिति में क्षेत्रीय दल बलपूर्वक आगे बढ़ रहे हैं। । वह स्वतंत्र रूप से चुनावी मैदान में उतरने के लिए अब कांग्रेस का इंतजार नहीं करना चाहिए। सियासी जानकारों का मानना है कि गठबंधन ने जून में हुई पहली बैठक से लेकर लगातार बैठकों में सीटों के बंटवारे पर कोई निर्णय नहीं लिया है
। गठबंधन में शामिल राजनीतिक दलों से जुड़े नेताओं का मानना है कि सिर्फ सीटों के बंटवारे पर निर्णय लेने से गठबंधन की शक्ति बनी रहती और चुनाव में बड़ी लड़ाई लड़ी जाती। लेकिन गठबंधन के दल एक-एक कर अलग होते रहे क्योंकि इस मामले में हुई बड़ी चूक और लापरवाही। सियासी जानकारों का मानना है कि गठबंधन की कमजोरी के कई महत्वपूर्ण कारणों पर ध्यान दिया गया है कांग्रेस अपने राजनीतिक जनाधार को बढ़ाने के लिए न्यायिक यात्रा निकाल रही है, एक वरिष्ठ नेता ने बताया. पार्टी ने हाल ही में INDI गठबंधन से अलग होकर अकेले राजनीति में प्रवेश किया है।
लेकिन गठबंधन में शामिल अन्य राजनीतिक दल मझधार में फंस गए। उनका कहना है कि वह क्या करते अगर वह चुनावी मैदान में ताल नहीं ठोंकते। पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में, कांग्रेस पार्टी ने गठबंधन की रणनीति को मजबूत करने की बजाय चुनाव में समय बिताया।
उनका कहना है कि कांग्रेस को राष्ट्रीय पार्टी होने के कारण विधानसभा चुनाव पर पूरा ध्यान देना भी जरूरी था, लेकिन विधानसभा चुनाव में भाग नहीं लेने वाले दल किस बात का इंतजार करते रहे? सिर्फ इसलिए कि कांग्रेस इन चुनावों से बाहर है, इसलिए गठबंधन पर ध्यान दें। विपक्षी गठबंधन में शामिल छोटे-छोटे दल इस स्थिति से बहुत असहज हो गए।
राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार रूपिंदर चहल का कहना है कि गठबंधन कमजोर हुआ क्योंकि सियासी गणित नहीं मिल रही थी। वह कहते हैं कि सियासी दल आपसी गठबंधन के बावजूद भी सहमत नहीं हुए। पटना, मुंबई, बेंगलुरु और दिल्ली में गठबंधन की बैठकों में सियासी रणनीति बनाने के मुद्दे कभी गंभीरता से नहीं उठाए गए।
उसने दावा किया कि ऐसा नहीं है और इस विषय पर प्रमुख घटक दल कांग्रेस से कोई बातचीत नहीं हुई है। लेकिन बैठकों के अलावा कोई चर्चा नहीं हुई। उनका विचार है कि अगर शुरुआती दौर में ही एक महत्वपूर्ण मुद्दा, सीट शेयरिंग पर निर्णय लिया जाता, तो विपक्षी गठबंधन अभी भी मजबूत होता।
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