हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय: याची ने जमानत के समय स्वीकार किया कि महिला उसकी पत्नी है, हाईकोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद निर्णय दिया कि पत्नी की तरह लंबे समय तक साथ रहने वाली महिला भी गुजारा भत्ता का हकदार है। यह बहाना देकर कि शादी गुरुद्वारे में हुई या आवश्यक रस्म पूरी नहीं हुई, गुजारा भत्ता नहीं दिया जा सकता।
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पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए स्पष्ट कर दिया कि पति-पत्नी के रूप में लंबे समय तक एक साथ रहना गुजारा भत्ता का दावा करने के लिए पर्याप्त है। गुजारा भत्ता एक कल्याणकारी प्रणाली है, इसलिए बहस को निश्चित रूप से साबित करना आवश्यक नहीं है।
यमुनानगर निवासी व्यक्ति ने फैमिली कोर्ट द्वारा निर्धारित छह हजार रुपये की गुजारा भत्ता को चुनौती दी। याचिका में कहा गया कि केवल कानूनी रूप से विवाहित पत्नी ही दावा कर सकती है कि वे गुजारा भत्ता पाते हैं। याची ने कहा कि जिस महिला ने उसे अपना पति बताया था, वह मुस्लिम थी और उसकी शादी पंजाब के एक गुरुद्वारे में हुई थी। याची ने कहा कि महिला उसकी किराएदार है और उसे अपने पति से बता रही है कि वह उसकी संपत्ति हड़पने वाली है।
हाईकोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद निर्णय दिया कि याची ने जमानत पर स्वीकार किया कि महिला उसकी पत्नी है। यह बहाना देकर कि शादी गुरुद्वारे में हुई या आवश्यक रस्म पूरी नहीं हुई, गुजारा भत्ता नहीं दिया जा सकता। लंबे समय तक पति-पत्नी के रूप में रहने के चलते महिला, विवाह की पुष्टि करने के लिए पर्याप्त सबूत होने पर भी गुजारा भत्ता पात्र होती है।
हाईकोर्ट ने निर्णय दिया कि अलग-अलग धर्म के लोगों के बीच विवाह हिंदू विवाह अधिनियम के तहत नहीं हो सकता है; इसके बजाय, स्पेशल विवाह अधिनियम इसे कर सकता है। ऐसे में याची की दलील कि उसका विवाह वैध नहीं है, बेकार है। याची ने 1996 में शादी की थी और करीब दो दशक तक साथ रहे। वैवाहिक विवाद ने बाद में दूरियां बढ़ा दीं। वैवाहिक विवाद ने बाद में दूरियां बढ़ा दीं। ऐसी स्थिति में महिला को नुकसान से बचाने के लिए ही गुजारा भत्ता दिया गया है। यह कल्याणकारी कानून है और इसका लाभ उठाने के लिए विवाह को शकमुक्त करना आवश्यक नहीं है। इन टिप्पणियों के साथ ही पति की याचिका हाईकोर्ट ने खारिज कर दी।
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