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Toggleवन हेल्थ: जनस्वास्थ्य में सुरक्षा और संतुलन की महत्वपूर्ण भूमिका:-
एफबीआई के निदेशक आएंगे भारत जॉन किर्बी ने कहा, “अभी इसकी जांच चल रही है और हमें इस बात की खुशी है कि हमारे भारतीय सहयोगी इसे गंभीरता से ले रहे हैं।” अभी इसकी जांच चल रही है, इसलिए हम अधिक विवरण नहीं दे सकते।याद रखें कि खालिस्तानी कट्टरपंथी गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश को अमेरिका की संघीय जांच एजेंसी एफबीआई जांच रही है। साथ ही अगले सप्ताह एफबीआई के निदेशक क्रिस्टोफर रे भारत का दौरा करेंगे। CBI भारत दौरे पर दिल्ली में और NAIA के अधिकारियों से मिलेंगे।
वन हेल्थ कार्यक्रम: पशु स्वास्थ्य की महत्वपूर्ण चुनौतियां:-
CCHF नामक वायरस, जो गुजरात और राजस्थान में पाया गया है: पशु से इंसान में भी फैलने की संभावना, हो सकता है मौत
ब्रूसीलोसिस नामक बीमारी भी पशुओं से इंसान में फैल सकती है। सरकार ने पशुओं को ब्रूसीलोसिस से बचाने के लिए वैक्सीनेशन कार्यक्रम शुरू किया है। देश भर में किसानों को जागरूक करने का अभियान चलाया जा रहा है।
चूहों से जानवरों में और जानवरों से इंसान में लेप्टोस्पायरोसिस बीमारी हो सकती है। ये बीमारी चूहों और कुत्तों के यूरिन के संपर्क में आने से मनुष्य में फैल सकती है। गुजरात और राजस्थान में क्रिमिन कांगो रक्तस्नावी बुखार (सीसीएचएफ) वायरस पाया गया है। यह वायरस किसी व्यक्ति में आ जाए तो मौत भी हो सकती है। चीका वायरस और निपाह भी होने पर आदमी मर सकता है। डॉ. एसएस पाटिल ने वीरवार को लाला लाजपतराय पशु विज्ञान एवं पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय में पशुचिकित्सा जनस्वास्थ्य विशेषज्ञों के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लिया था।
उस समय उन्होंने बताया कि पशुओं से इंसान में ब्रूसीलोसिस नाम की बीमारी भी फैल सकती है। सरकार ने पशुओं को ब्रूसीलोसिस से बचाने के लिए वैक्सीनेशन कार्यक्रम शुरू किया है। देश भर में किसानों को जागरूक करने का अभियान चलाया जा रहा है। चार से आठ महीने की गर्भवती गाय को बीमारी से बचाने के लिए उसे वैक्सीनेशन जरूर देना चाहिए। वैक्सीनेशन के बाद फिर से लगवाने की आवश्यकता नहीं होती। वैक्सीनेशन जीवाणु रोगों को रोका जा सकता है ब्रूसीलोसिस भैंस और गाय दोनों में समान रूप से घातक है और बराबर फैलती है।
वन हेल्थ कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए मेडिकल और वेटरनरी क्षेत्रों को सहयोग करना होगा:-
डॉ. जसबीर सिंह बेदी, सेंटर फॉर वन हेल्थ कार्यक्रम के डायरेक्टर, ने बताया कि वन हेल्थ कार्यक्रम विश्व भर में शुरू हो चुका है। वन हेल्थ एक वैश्विक दृष्टिकोण है, जिससे मनुष्य, जानवर और वातावरण में संतुलन बनाया जा सकता है। इसमें तीन संगठन शामिल हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन और वर्ल्ड ऑर्गेनाइजेशन फॉर एनीमल हेल्थ इसमें शामिल हैं। 2006 में, भारत में पहली नेशनल जूनोसिस कमेटी ने पशुओं और वन्य जीवन से आने वाली बीमारियों की जांच की। बनाया गया था, जानवरों और पशुओं को बीमार करने से बचाने के लिए।
जनस्वास्थ्य विशेषज्ञों का 19वां अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन, जो वीरवार से शुरू हुआ, वन स्वास्थ्य कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए मेडिकल और वेटरनरी क्षेत्रों का एकजुट होना आवश्यक है। डॉ. अशोक कुमार, सहायक महानिदेशक पशु स्वास्थ्य, नई दिल्ली, ने कहा कि वन स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य इको सिस्टम को साथ लेकर चलना है। जब तक इको सिस्टम सही है, प्लेनेट स्वस्थ रहता है। कई बार विभागों में से कुछ मेडिकल संसाधन अकेले काम करते हैं। विभिन्न क्षेत्रों ने इकोसिस्टम को संतुलित रखने के लिए एक साथ काम किया है।
लुवास में पशुचिकित्सा एवं जनस्वास्थ्य और वीरवार को महामारी विज्ञान विभाग और भारतीय पशुचिकित्सा जनस्वास्थ्य विशेषज्ञों के संगठन ने पशुचिकित्सकों के जनस्वास्थ्य विशेषज्ञों का 19वां अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन शुरू किया। डॉ. विनोद कुमार वर्मा, विश्वविद्यालय के कुलपति, ने इस अवसर पर कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार पिछले तीन से अधिक दशकों से मनुष्यों में उभरने वाली लगभग 75 प्रतिशत संक्रामक बीमारियां वन्यजीव प्रजातियों से पैदा हुई हैं।
वन हेल्थ दृष्टिकोण आज आवश्यक है:-
ये जूनोटिक बीमारियां वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा और आर्थिक कल्याण को खतरा बनाती हैं और बहुत बड़ी समस्याएं पैदा करती हैं। अब ब्रुसेलोसिस, टीबी, इबोला, सार्स और एवियन इन्फ्लूएंजा जैसे जूनोटिक रोगों की रोकथाम के लिए वन स्वास्थ्य दृष्टिकोण की आवश्यकता है। सम्मेलन की मुख्यातिथि और अग्रोहा मेडिकल कॉलेज की निदेशिका डॉ. अलका छाबड़ा ने कहा कि वन हेल्थ कार्यक्रम सफल होगा अगर वेटरनरी और मेडिकल प्रोफेशनल्स एक दूसरे के साथ काम करेंगे। डॉ. अशोक कुमार, विशिष्ट अतिथि सहायक महानिदेशक पशु स्वास्थ्य, नई दिल्ली, ने कहा कि आज के महामारी युग में वन स्वास्थ्य की अवधारणा ही संक्रमित रोगों से बचाव कर सकती है।
सम्मेलन के पहले दिन चार तकनीकी सत्रों का आयोजन किया गया था। डॉ. नवनीत ढंड (यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी, ऑस्ट्रेलिया) ने पहले सत्र में बताया कि कैसे हम महामारी विज्ञान की क्षमता को बढ़ाकर ट्रांसबाउंड्री और नए संक्रमित रोगों का निदान कर सकते हैं। दूसरे सत्र में Dr. JPगिल ने एंटीबायोटिक दवाओं का मानव और पशु दोनों में अत्यधिक उपयोग और दुरुपयोग के परिणामस्वरूप रोगाणुरोधी प्रतिरोध का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि एंटीबायोटिक के अत्यधिक उपयोग से इन दवाइयों का प्रभाव कम होता जा रहा है और यह एक वैश्विक खतरे का संकेत है।
प्रो. सिमोन मोर (यूनिवर्सिटी कॉलेज डबलीन, आयरलैंड) ने तीसरे सत्र में कहा कि वैज्ञानिकों में जनहित अनुसंधान के प्रति प्रतिबद्धता होना बहुत जरूरी है कि पशु स्वास्थ्य में अंतरराष्ट्रीय नीति को सही और प्रभावी ढंग से बनाया जाए। डॉ. एनके महाजन, एक मुर्गी विशेषज्ञ, ने चौथे सत्र में कहा कि एवियन इन्फ्लूएंजा, या बर्ड फ्लू, दुनिया भर में पोल्ट्री उद्योग, वन्य जीवन और सार्वजनिक स्वास्थ्य को चिंतित कर रहा है। पशुपालन, मानव स्वास्थ्य और वन हेल्थ के तहत एक प्राधिकरण को इस वायरस से जुड़े खतरों की निगरानी करने और उन्हें कम करने के लिए बनाने की जरूरत है।
उन्हें सम्मानित करते हुए, पूर्व महाराष्ट्र विश्वविद्यालय कुलपति डॉ. आशीष पातुरकर को लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया गया, वहीं पांच वैज्ञानिकों, डॉ. टीश्री निर्वासन राय, डॉ. रणधीर सिंह सैनी, डॉ. एसके नागपा, डॉ. शरण गौड़ा पाटिल और डॉ. समीर दास को इंडियन एसोसिएशन ऑफ वेटरनरीपब्लिक हेल्थ फेलो अवॉर्ड से सम्मानित किया|
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मधुमेह रोगियों के लिए 14 दिनों में कारगर उपचार का अध्ययन:-
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Diabetes Management: ’34, 14′
इंटरनेशनल आयुर्वेदिक मेडिकल जर्नल (आईएएमजे) में प्रकाशित इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने कहा है कि भारत में मधुमेह रोगियों की संख्या करोड़ों में है जिन्हें लेकर यह परिणाम काफी अहम हैं।
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